आस्था भक्ति और अद्भुत परंपरा के अनुच्छेद संगम स्थल श्री जगन्नाथ पुरी यात्रा धाम में वार्षिक रथ यात्रा का पावन महोत्सव अपनी धार्मिक भव्यता एवं हर्षोल्लास के साथ आरंभ हो चुका है।
देश विदेश से लाखों श्रद्धालु की उपस्थिति में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ आंखों को मन को मुंह देने वाले अलंकृत रथ को भक्त अपने हाथों से खींचकर गुड़िया मंदिर (मौसी माँ का घर) की ओर ले जाते हैं। इसमें शामिल होना सभी भक्तों के लिए उनके सपनों का पूरा होने जैसा होता है, इसमें शाम शामिल सभी श्रद्धालुओं का मन नाच रहा होता है।
जगन्नाथ पुरी, जिसे पुरुषोत्तम क्षेत्र या शंकर क्षेत्र भी कहा जाता है, यह हिंदुओं के पवित्र चार धामों (बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम और पुरी) में से एक है। यह उड़ीसा राज्य में स्थित है। यह उड़ीसा राज्य की समुद्र बंगाल की खाड़ी के तट पर उपस्थित है। यहां का मुख्य आकर्षण 12वीं शताब्दी में निर्मित भगवान श्री जगन्नाथ मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ (जगत के स्वामी), उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा को समर्पित है। मंदिर अपनी ऊंचे शिखर और पवित्र परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर में लाखों करोड़ों श्रद्धालु प्रतिवर्ष दर्शन करते हैं।
रथयात्रा: क्यों है इतनी प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण?
रथ यात्रा जिसे गुंदीचा यात्रा भी कहते हैं। यह जगन्नाथ पुरी के सबसे महत्वपूर्ण वार्षिक उत्सव में से एक है। यह प्रतिवर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आयोजित किया जाता है। इस पावन यात्रा के मान्यताएं:
दिव्य पारिवारिक भ्रमण : यह मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहन के साथ अपनी मौसी (माता गुंडिचा, जो राजा इंद्रद्युम्न की पत्नी थीं) के घर नौ दिनों के लिए विश्राम करने जाते हैं। यह एक भगवान का अपने भक्तों के साथ पारिवारिक रिश्ते को दर्शाता है।
सर्व श्रद्धालु को दर्शन का अवसर: रथयात्रा के दौरान, भगवान अपने रथ पर विराजमान होकर सार्वजनिक मार्ग से गुजरते हैं, जिससे कोई भी भक्त, बिना जाति-पंथ के भेदभाव के, उनके सीधे दर्शन का लाभ पा सकता है और उनके रथ को खींच सकता है। यह भगवान की सर्वव्यापकता का प्रतीक है।
पौराणिक आधार: यह यात्रा भगवान कृष्ण के द्वारका से वृंदावन आगमन की याद दिलाती है। कहा जाता है कि सुभद्रा को अपने मायके वृंदावन जाने की इच्छा हुई और दोनों भाइयों ने उन्हें रथ में बैठाकर वहाँ ले जाया। रथयात्रा इसी घटना की पुनरावृत्ति है।
मोक्ष प्राप्ति का मार्ग: ऐसी मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचते है या इस पवित्र यात्रा के साक्षी बनते है, उन्हें जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्ति होती है।
सांस्कृतिक और सामाजिक समानता: यह उत्सव सामाजिक समानता का अनूठा उदाहरण है। रथ खींचने का अधिकार सभी को है। यह एक विशाल सांस्कृतिक महाकुंभ भी है, जहाँ देश-विदेश से लोग ओडिशा की कला, संगीत, भक्ति परंपरा और रीति-रिवाजों से सीधे रूबरू होते हैं।
जगन्नाथ पुरी रथयात्रा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं; यह भारत की सांस्कृतिक आत्मा, धार्मिक सहिष्णुता, कलात्मक उत्कृष्टता और अटूट आस्था का जीवंत प्रतीक है। यह वह अनूठा स्थान है जहाँ भगवान अपने भक्तों के बीच सहज रूप में विचरण करते प्रतीत होते हैं। लाखों लोगों की एक साथ उपस्थिति, उनकी आँखों में चमकता विश्वास और एक सुर में गूँजता ‘जय जगन्नाथ’ का उद्घोष – यह दृश्य मानवीय भक्ति और दिव्य कृपा के अद्भुत मिलन का साक्षी बनता है। यह यात्रा भक्त को न केवल भगवान के करीब ले जाती है, बल्कि मानवता, समर्पण और आनंद के उस सर्वोच्च स्तर से भी परिचित कराती है, जो शायद ही कहीं और अनुभव किया जा सके। भगवान जगन्नाथ की यह भव्य शोभायात्रा सदियों से चली आ रही है और आने वाली अनेक पीढ़ियों तक मानव मन को आनंद और शांति से सराबोर करती रहेगी। जय जगन्नाथ!